नवदुर्गा के चौथे दिन कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है। अतः इस दिन अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से मां कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य को करना चाहिए।
माता की उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर सभी रोग-शोक दुख दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।
इनकी कृपा से समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि व्यक्ति सच्चे मन से इनका शरणागत बन जाए तो उसे फिर अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।
अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं।बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें अत्यधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं
श्लोक :माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।’
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा कोटि-कोटि नमन है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
नवदुर्गा पूजन
इस दिन संभव हो ,बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला की पूजन करनी चाहिए। भोजन में दही, हलवा खिलाना अच्छा माना जाता है। इसके उपरांत फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माता रानी अत्यंत प्रसन्न होती हैं। और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
माता की उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर सभी रोग-शोक दुख दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।
इनकी कृपा से समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इन